पता नहीं क्यूं??अपने बच्चो कोसिखाता हूँ सच कहना..पर कल ही..उनसे झूठ कहलवायाकह दो अंकल कोपापा ! घर पर नहीं हैं.........पता नहीं क्यूं??पति - पत्नी के रिश्तो पर..मैं उससे रखता हूँउम्मीद - विश्वास कि.....पर उस दिन हीमेरी खुद नजरनहीं बद-नजर..थी एक लावण्या पर ....पता नहीं क्यूं??माँ- पापा को रहती हैमुझ से उम्मीद..और क्यूँ ना होमै हूँ उनका सपूतपर कल ही मम्मी नेफ़ोन पे कहा..कुछ ना उम्मीदी से"भूल गया न तू!!"पता नहीं क्यूं??भ्रष्टाचार दूर करने केमुद्दे पर, चढ़ जाती हैमेरी त्योरियांपर पहचानता हूँ क्यामैं खुद की ईमानदारी ?पता नहीं क्यूं?इतना सब हो कर भीलगता है मुझेएक आम इंसानशायद होता हैमेरे जैसा ही ..क्या ये सच है????वक़्त के सांचे मेंखुद को ढालअपनी ही कमजोरियोंके साथखुद को बेबस मानहम को सबके साथबस यूँ ही जीना है .....
Friday, October 21, 2011
पता नहीं क्यूं??
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