थी
उम्रदराज
बस थोड़ी
होंगी उम्र में बड़ी
यानि
संभावनाएं....
मित्रता
के साथ
थी, मिलने
वाली सलाह की
उम्मीद
तो रहती ही है
पर ये
उम्मीद हुई भी पूरी
कभी मिली
सलाह
कभी की
उन्होने खिंचाई
कुछ
साहित्यक त्रुटियाँ भी बताई
हमने भी
सीखा व सराहा !
एक बार, अनायास ही हुआ उजागर
उनके
व्यक्तित्व का नया अनबूझा सा पन्ना
नितांत वैयक्तिक उपलब्धियों की लालसा में
चतुराई से
किया हुआ
जोड़, घटाव, गुणा भाग का
एक अलग गणित
संबंधो के
धरातल पर
क्योंकि वो
गढ़ रही थी
रिश्तों के
नए प्रमेय
जो था नए
संबंधो पर आधारित!
तभी तो “दो
सामानांतर रखाओं को
जब
त्रियक रेखा काटे तो
होते हैं, एकांतर कोण बराबर”
इसी
सिधान्त पर समझा रहीं थी
ढूंढ रही
थी, मेरी गलतियाँ
ताकि, दिख पाये, सब बराबर
आजमाए गए
गणितीय सूत्र
ताकि
सिद्ध हो पाये कि
रिश्तों
के प्रमेय
का गढ़ना
है उचित !!
माफ करो
यार !!
ऐसी
मित्रता को दूर से सलाम
एक
गणितीय सिद्धान्त और है
“समानान्तर
रेखाएँ
मिलती
हैं अनंत पर जाकर”
तो एक
स्पेसिफिक स्पेस
बना लिया
है मैंने
हर समय
के लिए